
नई दिल्ली : 30 जनवरी आज जिस प्रकार लोकतंत्र को भीड़तंत्र की आड़ में इस्तेमाल किया जा रहा है तथा समाज के तीन अलग-अलग आय वर्गों की अलग-अलग नीतियों के आधार पर तुष्टीकरण की नीति को प्रचारित प्रसारित एवं लागू किया जा रहा है! यह निसंदेह कुछ सालों तक चलने वाली राजनैतिक चौसर है! जिसका आधार रूपए पैसे का इस्तेमाल कर प्राप्त की गई पद प्राप्ति है ना की सामाजिक विचारधारा तथा सद्भावना एवं विकास परस्ती! जिस प्रकार निम्न आय वर्ग को पंडित नेहरू द्वारा संशोधित संविधान जाति के आधार पर आरक्षण प्रदान कर समाज को सैकड़ों टुकड़ों में तोड़ दिया गया! जबकि आरक्षण निम्न आय वर्ग को ही देना चाहिए था तथा भीमराव अंबेडकर ने आरक्षण का आधार आर्थिक ही रखा था ताकि न्यून जीवन जीने वाले लोगों का जीवन स्तर अच्छा हो सके! समाज को सैकड़ों टुकड़ों में तोड़ कर तकरीबन 70 साल एक परिवार ने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष राजनैतिक सत्ता को अपने हाथ में रखा! जब जब राजनेताओं ने संविधान की किसी धारा या कानून को अपनी निजी नीतियों के विरुद्ध पाया तब तब संविधान को पंडित जवाहरलाल नेहरू श्री राजीव गांधी श्रीमती इंदिरा गांधी एवं श्रीमती सोनिया गांधी द्वारा बदला गया! लेकिन एक बात आज तक किसी नेता ने नहीं बदली वह थी मुफ्त वस्तुएं एवं सुविधाएं बांट कर समाज को नपुंसक बनाने की रीत! इस रीत को प्रारंभ कांग्रेस ने किया बीजेपी ने बखूबी निभाया तथा इसका संपूर्ण फायदा आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में उठाया! इसके विपरीत कोई नेता यदि अपने देश की जनता में आत्म स्वाभिमान की भावना का प्रेरणा स्रोत बनता है तो वह देश के संसाधनों एवं उत्पादन वृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है! साथ ही देश विकास की ओर अग्रसर होता है एवं महंगाई तथा बेरोजगारी में कमी आती है! रोजगार व्यवसाय उत्पादन वृद्धि लोगों का सामाजिक,आर्थिक,शैक्षिक जीवन स्तर उन्नत करता है, साथ ही एक देश में आत्म स्वाभिमान की भावना को प्रोत्साहित करता है,भ्रष्ट बुद्धि राजनीतिक दलों एवं उनके सरगनाओ ने शिक्षा केंद्रों को भी आतंक का अड्डा बना दिया है तथा जो युवा देश का भविष्य कहलाता था आज वह देश विरोधी नारे लगा रहा है! कोई ताज्जुब की बात नहीं कुछ विश्वविद्यालयों से आतंकवादी बनने के लिए सरजील जैसे विद्यार्थी पीएचडी कर रहे हैं और प्राप्त शिक्षा का प्रयोग साइन बाग में हो रहा है!
अब एक तरफ सहज प्रवृत्ति सहिष्णु एवं सहज मानसिकता के लोगों को धर्मनिरपेक्ष बना दिया गया क्योंकि स्वभाव से ही हिंदू आतंक एवं हिंसा में विश्वास नहीं करता लेकिन ठीक उसके विपरीत उग्रवाद ने अपना एक संप्रदाय बना लिया जिसकी विचारधारा एवं जीवन शैली भारतीय समाज के लोगों को सदैव नापसंद थी! अतः दोनों में वैचारिक मतभेद सदैव बना रहा!इसके दो कारण हैं प्रथम यह उग्र समुदाय भारत मूल का नहीं था अतः जब भी किसी राजनीतिक मुद्दे का आधार मिला तब इस संप्रदाय ने सड़कों पर उतरकर पत्थरबाजी हिंसा एवं आतंक फैलाया एवं मानव अधिकारों का हनन किया! हुजूम की आड़ में नासिर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि देश की स्वास्थ्य चिकित्सा शिक्षा मुफ्त प्राप्त करते हैं साथ ही कुछ राजनीतिक दल धार्मिक कट्टरता भड़काने के लिए धर्म के नाम पर तनख्वाह भी बांटते हैं इनको संविधान एवं कानून के मुताबिक देश का प्रत्येक नागरिक समान अधिकार रखता है तो एक संप्रदाय के इमाम ओं को तनख्वाह और दूसरे धर्म के लोगों के प्रति दुर्व्यवहार यह सामाजिक सद्भावना के विरुद्ध सोची समझी साजिश है!
प्रत्येक समाज के लोगों को अब इन दंगाइयों से सावधान रहने की आवश्यकता है तथा इनको इन्हीं की भाषा में जवाब देने की हिम्मत करने की जरूरत भी, क्योंकि इन दंगों का मकसद साफ है जो लोग किसी भी कारण से सड़कों को गिरते हैं मंदिरों को तोड़ते हैं सरकारी जमीनों को कब जाते हैं वह लोग सोची समझी साजिश के तहत लड़ाई झगड़ा करने के लिए राजनैतिक संरक्षण या बहाने ढूंढते हैं! क्योंकि हमारे देश में घुसपैठियों की संख्या बहुत अधिक है और इन्होंने मेहनत इमानदारी और वफादारी के बलबूते पर संसाधन नहीं जुटाए हैं! अतः यह लोग दैनिक मजदूरी के आधार पर कुछ भी काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं, जिसमें सड़कों को घेरना दंगा करना सबसे आसान काम है!
बस यही राजनीतिक शय और मात की लड़ाई है असल सामाजिक विकास किसी राजनीतिक दल या नेता का मुद्दा नहीं रह गया है,जिस सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान होता है वह सार्वजनिक संपत्ति कर अदा करने वाले मेहनतकश आय वर्ग की संपत्ति है!
पुनः भारत के लोगों को अब राजनैतिक समझ ही उन्हें सही नेता चुनने में मदद कर सकती है तथा सदियों पुरानी मानसिक गुलामी से आजाद करा सकती है
डॉ निकी डबास